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श्रेष्ठो॑ जा॒तस्य॑ रुद्र श्रि॒यासि॑ त॒वस्त॑मस्त॒वसां॑ वज्रबाहो। पर्षि॑ णः पा॒रमंह॑सः स्व॒स्ति विश्वा॑ अ॒भी॑ती॒ रप॑सो युयोधि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śreṣṭho jātasya rudra śriyāsi tavastamas tavasāṁ vajrabāho | parṣi ṇaḥ pāram aṁhasaḥ svasti viśvā abhītī rapaso yuyodhi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श्रेष्ठः॑। जा॒तस्य॑। रु॒द्र॒। श्रि॒या। अ॒सि॒। त॒वःऽत॑मः। त॒वसा॑म्। व॒ज्र॒बा॒हो॒ इति॑ वज्रऽबाहो। पर्षि॑। नः॒। पा॒रम्। अंह॑सः। स्व॒स्ति। विश्वाः॑। अ॒भिऽइ॑तीः। रप॑सः। यु॒यो॒धि॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:33» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:16» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वज्रबाहो) वज्र के तुल्य औषध बाहु में रखने और (रुद्र) रोगों के लोप करनेवाले ! जिससे आप (तवसाम्) बलिष्ठों में (तवस्तमः) अतीव बलवान् (जातस्य) प्रसिद्ध जगत् के बीच (श्रेष्ठः) अत्यन्त प्रशंसायुक्त (श्रिया) शोभा वा लक्ष्मी के साथ वर्त्तमान (अति) हो वा (नः) हमलोगों को (अंहसः) कुपथ्य से उत्पन्न हुए (रपसः) कर्म से (पारम्) पार (पर्षि) पहुँचाते हो वा (विश्वाः) समस्त पीड़ाओं को (युयोधि) अलग करते हो वा (स्वस्ति) सुख उत्पन्न करते हो, इससे हम लोगों से सत्कार पाने योग्य हो ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो आप रोगरहित शोभते हुए अतीव बलवान् हैं, औरों को रोगरहित करके निरन्तर सुखी करते हैं, वे सबको सर्वदा सत्कार करने योग्य हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे वज्रबाहो रुद्र यतस्त्वं तवसां तवस्तमो जातस्य श्रेष्ठः श्रिया सह वर्त्तमानोऽसि नोऽस्मानंहसो रपसः पारं पर्षि विश्वाः पीडा युयोधि स्वस्ति जनयसि तस्मादस्माभिः सत्कर्त्तव्योऽसि ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (श्रेष्ठः) अतिशयेन प्रशंसितः (जातस्य) प्रसिद्धस्य जगतो मध्ये (रुद्र) रोगाणां प्रलयकृत् (श्रिया) शोभया लक्ष्म्या वा (असि) (तवस्तमः) अतिशयेन बली (तवसाम्) बलिनाम् (वज्रबाहौ) वज्रवदौषधं बाहौ यस्य तत्सम्बुद्धौ (पर्षि) पारयसि (नः) अस्मान् (पारम्) (अंहसः) कुपथ्यजन्याऽपराधात् (स्वति) सुखम् (विश्वाः) सर्वाः (अभीतिः) अभितः सर्वत इत्या प्राप्त्या (रपसः) पापस्य (युयोधि) पृथक् करोषि ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये स्वयमरोगाः शोभमाना बलिष्ठा वैद्या अन्यानरोगान् कृत्वा सततं सुखयन्ति ते सर्वैः सर्वदा सत्कर्त्तव्याः ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे स्वतः रोगरहित अत्यंत शोभनीय व बलवान वैद्य असतात व इतरांना रोगरहित करून निरंतर सुखी करतात अशा लोकांचा सर्वांनी सत्कार करावा. ॥ ३ ॥